प्रभावित स्थानों के आधार पर गठिया की 100 से भी अधिक किस्मों नीचे दी गई किस्में अधिक पाई जाती हैं।

(1) ऑस्टियो आर्थराईटिस (Osteo Arthritis) :- यह आयु बढ़ने के साथ-साथ होने वाला एक सामान्य रोग है जो जोड़ों में उपास्थियों (Cartilage) के घिस जाने के कारण होता है। इसमें आमतौर पर घुटने, नितम्ब (Hip) रीढ़ की हड्डी (Vertebral Column) प्रभावित होते हैं। कभी कभी यह अंगुलियों में भी हो जाता है।

(2) रूमेटाइड आर्थराईटिस (Rheumatoid Arthritis) :- इस रोग के होने पर विशेष रूप से छोटे जोड़ों, अँगुलियों, कलाइयों, कुहनियों, घुटनों, टखनों इत्यादि में दर्द होने लगता है और ये अकड़ जाते हैं। जोड़ों में सूजन आ जाने से उपास्थियाँ (Cartilage) तो क्षतिग्रस्त हो ही जाती है, साथ में यह माँसपेशियों (Muscles), कंडराएं (Tandons) एवं कोशिकाओं (Tissues) वाली विकृतियां व्यक्ति को विकलांग बना देती हैं। यह पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक पाया जाता है।

(3 ) गाउटी आर्थराईटिस (Gouty Arthritis) :- समय-समय पर इस रोग की वजह से पंजों में काफी दर्द हो जाता है और यह इतना अधिक होता है कि हल्के से छू देने पर से रोगी अपना पंजा एक ओर को हटाने लगता है। इसके पुराना पड़ जाने पर Cartilage से संबंधित हड्डी धीरे धीरे क्षतिग्रस्त होने लगती है जिससे विकलांगता आने लगती है। गाऊट के दस प्रतिशत मरीजों में पथरी हो जाती है। यह पुरुषों में अधिक पाया जाता है।

(4) सर्वाईकल स्पोंडिलाईसिस (Cervical Spondylosis) :- इसमें गर्दन की हड्डियाँ और कमर का निचला भाग प्रभावित होता है।

आर्थराईटिस के लक्षण :- जोड़ों में दर्द, सूजन एवं अकडन। ये प्रायः मौसम में बदलाव आने के समय ज्यादा दिखाई पड़ते हैं। बालों का अधिक गिरना ।

कारण :- जोड़ों में यूरिक एसिड का संचित हो जाना इसका मुख्य कारण है। यह रोग अधिक प्रोटीन युक्त आहार के सेवन करने वालों को ज्यादा होता है। अधिक अम्लोत्पादक भोजन विशेषकर सभी प्रकार के मांस, मछली, अंडा, अधिक दाल एवं दूध तथा दूध जन्य खाद्य, नमक, मिर्च मसालों का अधिक सेवन, गैस, कब्ज और श्रम तथा व्यायाम की कमी, अधिक दवाओं का सेवन। उपचार :- शरीर में संचित यूरिक एसिड को घुलाकर निष्कासित करने के लिए पोटाशियम प्रधान खाद्य खीरा, लौकी, ककड़ी, तरबूज, पत्तागोभी, पालक, सफेद पेठा आदि के रस पर दो-तीन दिन का उपवास रखना चाहिए।

अनानास, आँवला, संतरा एवं नींबू का रस भी लिया जा सकता है।

उसके बाद कुछ सप्ताह अपक्वाहार (मौसम के फल एवं सलाद ) इत्यादि पर रहें। हरी सब्जियों का सूप लें। रसाहार नियमित लेते रहें। नारियल पानी लें। फलों में अंगूर तथा शरीफा लें। गेहूँ के जवारे का रस या कच्चे आलू का रस पीना भी अति उत्तम है। रात को भिगोई हुई दो-तीन अंजीरें, दस पन्द्रह मुनक्का एवं एक खुबानी प्रातः प्रतिदिन लें।

दालें, दूध, दही, तली भुनी चीजें, चीनी इत्यादि न लें।

पानी खूब पियें। रातभर तांबे के बर्तन में रखा पानी पीना विशेष लाभकारी है। लहसुन भी बहुत उपयोगी है। नित्य अंकुरित मेथीदाना एवं शहद अवश्य लें। खजूर एवं तिलों के लड्डू बनाकर खाएं। अदरक एवं तुलसी का रस हल्का गर्म पानी डालकर पियें। साप्ताहिक उपवास रसाहार पर करें।

नित्य प्रातः सायं 250-250 मि. ली. सूर्यतप्त हरी बोतल का पानी पियें तथा प्रभावित भाग पर सूर्य की लाल किरणें दें।

मिट्टी पट्टी, एनीमा, कटिस्नान, मेहनस्नान, भापस्नान, धूपस्नान, सूखा घर्षण, गर्म पाद स्नान, गर्म पट्टी, गर्म मिट्टी की पट्टी, गर्म ठंड़ी सेक योगनिद्रा अति उत्तम है।

जोड़ों की हल्की शुष्क मालिश, नींबू के रस की मालिश एवं अधिक सूजन में बर्फ के ठंडे पानी की पट्टी करें। प्रभावित भाग पर नारियल या सरसों के तेल में कपूर मिलाकर मालिश

करने से जोड़ों की अकड़न कम हो जाती है।

एक चुटकी हल्दी की फांकी पानी के साथ लें। हरसिंगार की चार-पाँच पत्तियाँ पीसकर एक गिलास पानी से सुबह-शाम दो-तीन सप्ताह तक पीने से रोग समाप्त हो जाता है।

टब के पानी में नमक डालकर तीस मिनट तक लेटें। श्वास प्रश्वास की प्रक्रिया, प्राणायाम में भस्त्रिका, नाड़ीशोधन, सूर्यभेदी, उज्जायी तथा आसनों में पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, गोमुखासन, भुजंगासन, गोरक्षासन, सिंहासन, लाभदायक हैं। हाथ और पैरों की साईकल चलाने की क्रिया करें।

चेतावनी: आयुर्वेदाचार्य अथवा डॉक्टर के परामर्श के बिना आप साइट पर दिए हुए सूचना को पढ़कर किसी भी प्रकार की औषधि एवं उपचार का प्रयोग ना करें !!!


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